Skip to content Skip to footer

अश्विनी प्रताप सिंह

धरती और मनुष्य के बीच अटूट संबंध है। ‘धरा’ शब्द संस्कृत से निकला है जिसका तात्पर्य है ‘धारण करना’ अर्थार्थ जो हमें धारण करती है, वो धरा है। धरती और समाज का भी आपस में काफी गहरा संबंध है। हमारे द्वारा जो कार्य निष्पादित किए जाते हैं, धरा इन सभी का आधार है। इसलिए हमने धरा यानी धरती को माता कहा है। धरती का पर्यावरण और समाज से संबंध भी अपने आप ही स्पष्ट होता है। इस पर उगने वाली वनस्पति एवं रहने वाले प्राणी धरती से पोषण प्राप्त करते हैं। इसलिए जब इसके संरक्षण, संवर्धन तथा प्रबंधन की बात आती है तो हमारे सामने अनेक पहलू होते हैं।

वायु और पानी की उपलब्धता धरती के महत्त्व का अहम अंग है। पर्यावरण का संतुलन इनके संतुलित दोहन एवं प्रबंधन पर निर्भर है। मनुष्य के जीवन के लगभग हर पहलू में जल की आवश्यकता होती है चाहे वो घर हो, दफ्तर हो, उद्योग हो, खेती हो, पशुपालन आदि हो। विगत चार- पांच दशक पहले तक आम जनमानस की यह मान्यता थी कि जल आजीवन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहेगा। मगर वर्तमान समय में पानी की कमी ने एक भीषण रूप धारण कर लिया है। 

पानी की उपलब्धता को बढ़ाने के सरल उपाय कई वर्षों से किए जा रहे हैं, लेकिन बढ़ती हुई आवश्यकताओं में वे उपाय अपर्याप्त साबित हो रहे हैं। इसलिए इन उपायों को अपनाने की गति को तेज करना होगा और वर्षा जल के अधिकाधिक भंडारण हेतु हमें स्थानीय रूप से जलसंग्रह संरचनाओं के विकास के प्रति गंभीर रूप अपनाना होगा।

पानी पर निर्भर सबसे बड़े व्यवसाय खेती पर इसका असर दूरगामी होता है। देश की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा अपने रोजगार एवं आजीविका के लिए कृषि पर ही निर्भर है। अतः उत्पादन के साथ साथ कृषि पर निर्भर मानवश्रम/मज़दूरों पर भी सूखे का असर होता है। रोजगार की तलाश में पलायन आरंभ होता है तथा धीरे धीरे ये समस्या गंभीर रूप धारण कर लेती है तथा वर्षा जल के पर्याप्त संरक्षण ना होने की दशा में उपस्थित समस्याओं के समन्वित असर को हम सूखा/सुखाड़ कहते हैं।

सूखा सबके लिए समान रहता है उसका असर सहने की क्षमता प्रत्येक व्यक्ति की अलग अलग होती है। कमजोर व्यक्ति सूखे की मार को ज्यादा देर तक सहन नहीं कर सकता। उसे दूसरे की तुलना में जल्दी सहायता की जरूरत होती है। सामाजिक, आर्थिक रूप से सशक्त व्यक्ति की भंडारण क्षमता अच्छी होने से वे सूखे की स्थिति में अपने परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहते हैं। वातावरण सामान्य होने पर पुनः संसाधनों की प्रतिपूर्ति होती है तथा जनजीवन सामान्य होने लगता है। वहीं सूखे का सामना सभी के द्वारा समान रूप से करने पर संसाधनों की उपलब्धता सभी के लिए सुनिश्चित की जा सकती है, क्योंकि सूखा एक विशेष परिस्थिति है, इसलिए इसमें समाज का दायित्व महत्वपूर्ण है।

सूखे की स्थिति में हमें पानी के उचित प्रबंधन की नितांत आवश्यकता है। पानी के उचित प्रबंधन हेतु बृहतस्तर पर प्रयास करने होंगे। जल प्रबंधन में समस्त समुदाय को अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी होती है। ऐसा देखा गया है कि अक्सर जल प्रबंधन के उपायों को लागू करने से वांछित परिणाम नहीं मिलते हैं। इसका मुख्य कारण समुदाय की भागीदारी और प्रयासों का ना होना है।

  • सूखा घोषित होने की स्थिति में पानी, अनाज और अन्य साधनों का आकलन करना चाहिए तथा यह तय करना चाहिए की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किन किन संसाधनों की कितनी मात्रा की जरूरत होगी। 
  • संसाधनों का उपयोग करते समय इस बात का विशेष ख्याल रखें की बर्बादी ना हो। चूँकि संसाधन सीमित होंगे, इसलिए जरूरी आवश्यकताओं की पूर्ति का ही प्रयास हो। 
  • दूसरों के लिए राहत कार्यों का संचालन करें। सूखे के समय स्वास्थ्य के प्रति प्रत्येक समाज को सजग रहने की जरूरत है और किसी भी प्रकार के संक्रमण की त्वरित सूचना स्वास्थ्य संगठनों को देना चाहिए ताकि उसे फैलने से रोका जाए। 
  • समाज के कमजोर व्यक्ति और वर्ग का विशेष ख्याल रखना चाहिए। सूखे में जिन परिवारों, व्यक्तियों पर प्रभाव अधिक रहता है, वे अन्य के साधनों को प्राप्त कर अपनी तात्कालिक आवश्यकता की पूर्ति करने की कोशिश करते हैं और इसके लिए मौका देखकर अपराधिक कार्य कर सकते हैं। 
  • सामाजिक कुआं, हैंडपंप, ट्यूबवेल, बोरिंग, तालाब आदि का प्रबंधन एवं सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहिए। सूखे के समय शासन द्वारा चलाए जाए जा रहे कामों में सहयोग कर भविष्य के लिए पर्याप्त साधन स्थानीय रूप से उपलब्ध रहने लायक व्यवस्था का निर्माण करना चाहिए ताकि भविष्य में सूखा पड़ने की दशा में उसका असर कम से कम हो।
  • सूखे के समय जानवरों के मरने से भी बीमारियां फैलती हैं। मरे हुए जानवरों से रोग उत्पन्न ना हो पाए इसलिए उन्हें तत्काल हटाने और दूरस्थ क्षेत्रों में उन्हें दफनाने की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। 

सामाजिक दायित्वों का बोध कराने की जिम्मेदारी प्रत्येक ग्रामवासी/ शहरवासी की है। गांव /शहर में सूखे की स्थिति का सामना अकेले नहीं किया जा सकता। इस बात को स्पष्ट रूप से समझना होगा। समन्वित प्रयास के साथ साथ सही दिशा में कार्य सम्पादन करके ही हम सफलतापूर्वक सूखे का सामना कर सकते हैं। व्यक्ति – विशेष या समूह- विशेष को केंद्र में रखकर किए गए नियोजन से समाज को पूर्ण लाभ नहीं मिल सकता है। सूखा समाज के संगठनात्मक मूल्यों की परीक्षा है। इसके लिए सामाजिक नियोजन कर समाज के लक्ष्यों के अनुसार दिशा प्रदान करना परम आवश्यक है, ताकि आपसी सामंजस्य स्थापित हो सके।

CEEDIndia © 2024. All Rights Reserved.