रीति प्रिया |
संयुक्त राष्ट्रसंघ से जुड़ी संस्था इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज द्वारा अप्रैल 2022 में प्रकाशित रिपोर्ट में चिंता व्यक्त की गयी है कि कार्बन उत्सर्जन का स्तर वर्ष 2010-2019 के दौरान मानव इतिहास में सबसे ज्यादा रहा है। रिपोर्ट ने आगाह किया है कि वैश्विक तापमान बढ़ने की वजह से दुनिया को बाढ़, सूखा और जंगल की आग जैसे तबाही का सामना करेगा। कुछ प्रमुख शहरों में जल संकट गहरा होगा, तो कई जलमग्न हो जायेंगे। जैव विविधता के नाश के साथ कई लाख प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा और बढ़ जायेगा|
विश्व के सभी देश पहले से ही भीषण मौसमी बदलाव का सामना कर रहे हैं। मानवजनित कारणों से पैदा जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से भारत भी अछूता नहीं रहा है। दक्षिण एशियाई हीटवेव की वजह से मार्च–अप्रैल 2022 में भारत में प्रचंड गर्मी पड़ी। एक अध्ययन (स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट 2022) के अनुसार 11 मार्च से 24 अप्रैल 2022 तक भारत के 16 राज्यों में हीट–वेव (अत्यधिक गर्म मौसम की अवधि) जैसी स्थिति बनी रही ।
कहीं जंगलों की आग, कहीं भीषण बाढ़ तो कहीं सूखा। स्वरूप भले ही भिन्न हो पर वैश्विक स्तर पर हो रही इन प्राकृतिक आपदाओं का कारण एक है। कुदरत के नियमों में ख़तरनाक इंसानी दखल के बाद अब पर्यावरण क्षरण एवं क्लाइमेट चेंज का मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चिंता का विषय बन चुका है। पर्यावरण के मुद्दों पर वैश्विक बिरादरी हर साल बैठक कर रही, पर इन बैठकों में तय किये गए लक्ष्यों के पूरे होने की गति बहुत धीमी है। इन बैठकों में बड़े–बड़े वादे तो किये जाते है पर उन्हें पूरा करने में सालों लग जाते है, जिसका नतीजा हम सब के सामने है। विकसित देश ऊर्जा के विभिन स्रोतों का प्रयोग कर आज विकसित है, बल्कि विकाशील देशों ने उतना प्रयोग नहीं किया है। इसके बावजूद जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का वितरण सभी देशों के लिए समान है।
जलवायु परिवर्तन एक लगातार बढ़ती समस्या है जिसके सबसे व्यावहारिक समाधानों में से एक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी है। यह नेट–जीरो एमिशन (शून्य कार्बन उत्सर्जन) नीतियों की ओर एक बदलाव के जरिए प्राप्त किया जा सकता है जो पवन, सौर और जल–विद्युत शक्ति जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देता है। दरअसल, विकास की गति रोकी नहीं जा सकती, इसके स्वरूप में परिवर्तन किया जा सकता है। विकास में बाधा डाले बिना उत्सर्जन कम करने के लिए हाइड्रोडन जैसे वैकल्पिक ईंधनों का प्रयोग बढ़ाना होगा।
मानव गतिविधियों से उत्पन्न होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वर्ष 2010 के बाद से दुनिया भर के तमाम प्रमुख क्षेत्रों में बढ़ोत्तरी हुई है जिसका मूल कारण उद्योग, ऊर्जा आपूर्ति, परिवहन, कृषि व इमारतों में वैश्विक गतिविधियों में बढ़ोत्तरी है। नेट–जीरो एमिशन से जुड़ी पहल मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक जहरीले प्रदूषकों को समाप्त करने में मदद करेंगी। इससे शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए श्वसन संबंधी स्वास्थ्य परिणामों में सुधार होगा, जहां वायु प्रदूषण आमतौर पर सबसे अधिक होता है।
विकास के नाम पर हम एक विनाशकारी रास्ते पर अग्रसर है, एक बेहतर और सुरक्षित भविष्य के लिए कार्बन उत्सर्जन में भारी कटौती आवश्यक है। औद्योगिक प्रक्रियाओं में ऊर्जा के अक्षय स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देकर उत्सर्जन को काफी कम किया जा सकता है। इसी तरह, परिवहन क्षेत्र वैश्विक उत्सर्जन के एक बड़े भाग के लिए जिम्मेदार है। सस्टेनेबल मोबिलिटी के अन्य उपायों के साथ–साथ इलेक्ट्रिक वाहनों, सार्वजनिक परिवहन और साइकिल के उत्पादन और उपयोग में वृद्धि से प्रदूषण स्तर को कम करने में मदद मिल सकती है।
स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देने वाली शून्य–उत्सर्जन नीतियों को अपनाने से क्लाइमेट चेंज की समस्या का समाधान हो सकता है। पृथ्वी की सुरक्षा और आने वाली पीढ़ियों के हित के लिए दुनिया को नेट–जीरो भविष्य की दिशा में साहसिक कदम उठाने चाहिए। पृथ्वी और प्राणी जगत को बचाने के लिए हरसंभव एकजुट प्रयास करना होगा। धरती के तापमान वृद्धि को 1.5 सेंटीग्रेड के अंदर रोकना ही होगा।