जी-20 शिखर सम्मेलन : ग्लोबल साउथ के समावेशी विकास एवं खुशहाली पर जोर

जी-20 शिखर सम्मेलन : ग्लोबल साउथ के समावेशी विकास एवं खुशहाली पर जोर

रांची।

अभी हाल में भारत की अध्यक्षता में संपन्न हुए जी-20 के शिखर सम्मेलन में सर्वसम्मति से पारित ‘नई दिल्ली घोषणा’ पूरी दुनिया खासकर ग्लोबल साउथ के विकासशील और अविकसित देशों के लिहाज से उल्लेखनीय उपलब्धि है। यह न केवल वैश्विक मंच पर भारत के प्रभावशाली नेतृत्व को भी उजागर करती है, बल्कि भारत के जरिए जी-20 के भीतर पैदा हुई एकजुटता की भावना को रेखांकित करती है। इस ऐतिहासिक सम्मेलन के केंद्र में ग्रीन डेवलपमेंट पैक्ट है, एक ऐसी पहल जिसका विशेष रूप से पर्यावरणीय सततशीलता एवं समावेशी विकास के संदर्भ में भारत और दुनिया के लिए खास महत्व है। दरअसल, भारत में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन ने वैश्विक आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिए एक साहसिक और व्यापक प्रतिबद्धता प्रदर्शित की है।

ग्रीन डेवलपमेंट पैक्ट के केंद्र में एक स्वच्छ, समावेशी और किफायती एनर्जी ट्रांज़िशन के लिए एक दृढ़ प्रतिबद्धता है। सततशील भविष्य की बुनियाद एवं विस्तृत रूपरेखा है। इसमें क्लाइमेट रेसिलिएंट एवं इंक्लूसिव इकोनॉमी पर खास जोर है। महिला एवं कमजोर तबके के केंद्रित विकास ढांचे पर विशेष बल है।

इस शिखर सम्मेलन ने वर्ष 2030 तक वैश्विक अक्षय ऊर्जा क्षमता-विस्तार को तीन गुना करने की एक महत्वपूर्ण संकल्प की अगुवाई की है, जो 2023 और 2030 के बीच 7 अरब टन कार्बन  उत्सर्जन को रोकने का वादा करता है। पर्यावरणीय चुनौती की तात्कालिकता को पहचानते हुए, शिखर सम्मेलन में वर्ष 2040 तक भूमि क्षरण (लैंड डिग्रेडेशन) को 50 प्रतिशत तक कम करने पर जोर दिया है, जो पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के वैश्विक दृढ़ संकल्प को रेखांकित करता है।

वैसे विविध अंतर्राष्ट्रीय मंचों एवं सम्मेलनों में फाइनेंसिंग एवं टेक्नोलॉजी ट्रांसफर पर सहमति की कमी एवं बहुत लेटलतीफी रही है। पर भारत की जी-20 अध्यक्षता ने विकासशील देशों की जरूरतों पर खास प्रकाश डाला है, जिन्हें अपने जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सम्मलित रूप से करीब 5.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है, ताकि ग्लोबल साउथ की अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत किया जा सके। यह वित्तीय फोकस ग्लोबल साउथ के राष्ट्रों के सामने आने वाली विशिष्ट चुनौतियों को पहचानते हुए, सततशील विकास लक्ष्यों के एजेंडे के साथ क्लाइमेट एक्शन को सामंजस्यपूर्ण रूप से क्रियान्वित करने पर खास बल देता है। इसके अलावा, वर्ष 2050 तक नेट-जीरो एमिशन के वैश्विक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विकसित एवं सम्पन्न देशों में क्लीन एनर्जी ट्रांजिशन के लिए 4 ट्रिलियन अमेरिकी डालर के वार्षिक निवेश की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

ब्राजील, संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ ग्लोबल बायोफ्यूल अलाएंस (वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन) की शुरुआत भारत के नेतृत्व का एक और उदाहरण है। इस गठबंधन ने पर्यावरणीय स्थिरता और वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के महत्व को रेखांकित करते हुए जैव ईंधन को क्लीन एनर्जी ट्रांजिशन के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में स्थापित किया है। इसके अतिरिक्त भारत ने जलवायु अवलोकन के लिए एक जी-20 उपग्रह का प्रस्ताव रखा है, जो जी-20 दुनिया के सभी देशों को उनके जलवायु-संबंधित प्रयासों में समर्थन देने, महत्वपूर्ण डेटा और जानकारी तक समान पहुंच सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता का एक प्रमाण है।

ग्लोबल नॉर्थ एवं साऊथ के बीच दूरी पाटने और भू-राजनय के केंद्र में भारत को रखने के लिहाज से भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा बेहद महत्वपूर्ण पहल है, जो अंतर्देशीय व्यापार को बढ़ावा देने, हरित हाइड्रोजन जैसे ऊर्जा संसाधनों को वितरित करने और डिजिटल बुनियादी ढांचे को विकसित करने का ठोस कदम बन सकता है। अन्य महत्वपूर्ण कदमों में ‘रिसोर्स एफिशिएंसी एवं सर्कुलर इकॉनमी इंडस्ट्री कोलिशन’, महर्षि (बाजरा और अन्य प्राचीन अनाज पर अंतर्राष्ट्रीय शोध पहल), और ‘ग्लोबल डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर रिपोजिटरी’ ने सततशील संसाधन प्रबंधन को आगे बढ़ाने, अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा देने के लिए शिखर सम्मेलन की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया।

इसी तरह महासागर-आधारित ब्लू इकोनॉमी की पहल सामाजिक-आर्थिक लाभों के लिए वैज्ञानिक ढंग से महासागरों की क्षमता का यथोचित  उपयोग करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस शिखर सम्मेलन ने वैश्विक जैव विविधता के संरक्षण के महत्व को मजबूत करते हुए कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क को प्रभावी ढंग से लागू करने का वादा किया गया है।

भारत की अध्यक्षता में हुए जी-20 की एक विशिष्ट पहचान रही है समावेशी नीति, जिसका प्रतीक अफ्रीकी संघ (अफ्रीकन यूनियन) को सदस्य के रूप में शामिल करना रहा। इस कदम ने महत्वपूर्ण वैश्विक आर्थिक और जलवायु परिवर्तन मामलों पर ग्लोबल साउथ की आवाज को बढ़ाया, साथ ही अधिक सततशील और खुशहाल दुनिया में सहयोग और समानता को बढ़ावा देने के लिए अटूट प्रतिबद्धता को उजागर किया है। इसी तरह जेंडर आधारित क्लाइमेट एक्शन पर खास तवज्जो देने का अर्थ यह है कि महिलाओं को किसी भी जलवायु प्रयासों के केंद्र में रखा जाना अनिवार्य है।

सामूहिक रूप से ये सभी पहलें न केवल भारत के लिए बल्कि पूरे ग्लोबल साउथ के लिए एक सततशील एवं सुरक्षित भविष्य को आकार देने के लिए भारत के दृढ़ समर्पण को दर्शाती हैं। भारत की जी-20 अध्यक्षता हमारे समय की गंभीर चुनौतियों से निपटने में आशा और कार्रवाई की किरण बनी है और उम्मीद है कि इसी वर्ष नवंबर-दिसंबर में दुबई में आयोजित हो रहे जलवायु परिवर्तन के समाधान के लिए वैश्विक सम्मेलन (कॉप-28) में भी भारत पुनः एक नेतृत्वकारी भूमिका निभाएगा।

(लेखक- रमापति कुमार, सेंटर फॉर एनवायरनमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीड) के चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर हैं)

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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