विकास की नई रूपरेखा तैयार करेगा सस्टेनेबल जस्ट ट्रांजिशन

रमापति कुमार

झारखंड सरकार द्वारा नवंबर माह में गठित ‘सस्टेनेबल जस्ट ट्रांजिशन टास्क फ़ोर्स’ राज्य ही नहीं बल्कि भारत के क्लाइमेट चेंज से संबंधित महत्वाकांक्षी लक्ष्यों और ग्रीन इकोनॉमी के रास्ते पर चलने के लिहाज से बेहद अहम है. यह टास्क फ़ोर्स राज्य की भावी दशा और दिशा के लिए बेहद निर्णायक पहल है, क्योंकि यह आकलन करेगा कि हरित अर्थव्यवस्था की राह पर चलना झारखंड जैसे खनिज संपन्न राज्य को कैसे प्रभावित करेगा और इसका क्या ठोस समाधान एवं नीतिगत रास्ता होगा.

विकास की नई रूपरेखा तैयार करेगा सस्टेनेबल जस्ट ट्रांजिशन

सस्टेनेबल जस्ट ट्रांजिशन टास्क फोर्स के मुख्य उद्देश्य हैं – जीवाश्म ईंधन पर आधारित मॉडल से अलग स्वच्छ ऊर्जा तंत्र के निर्माण के क्रम में आनेवाले प्रभावों का अध्ययन करना, प्रमुख ग्रीन सेक्टर्स और इनके ठोस वित्तपोषण में नए अवसरों की पहचान करना, और कार्बन न्यूट्रल इकोनॉमी के लिए सेक्टोरल स्तर पर नीतिगत हस्तक्षेप की सिफारिश करना आदि. यह जीवाश्म ईंधन के खनन पर प्रत्यक्ष रूप से आश्रित जिलों के लिए एक्शन प्लान भी तैयार करेगा और झारखंड सरकार को वैकल्पिक विकास रोडमैप रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा. टास्क फोर्स से लगभग एक साल में एक अंतरिम रिपोर्ट और दूसरे वर्ष के अंत में व्यापक रिपोर्ट पेश करने की उम्मीद की गयी है.

पिछले साल संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जलवायु परिवर्तन पर केंद्रित ग्लासगो सम्मेलन (COP-26) में भारत ने वर्ष 2030 तक अक्षय ऊर्जा के माध्यम से अपनी ऊर्जा जरूरतों का 50 प्रतिशत पूरा करने और वर्ष 2070 तक जलवायु-अनुकूल प्रौद्योगिकियों के साथ अपने ग्रीन हाउस उत्सर्जन को शून्य स्तर (नेट जीरो टारगेट) पर लाने का संकल्प लिया था. इस साल शर्म अल-शेख में हुए वैश्विक सम्मेलन में इन बातों को ज्यादा ठोस ढंग से आगे बढ़ाने और क्लाइमेट फाइनेंस की एक व्यवस्था तैयार करने पर बात हुई है. उद्योग-धंधों में डीकार्बोनाइजेशन की प्रक्रिया, क्लीन एनर्जी और ग्रीन टेक्नोलॉजी का अधिकाधिक इस्तेमाल न केवल इनके संचालन का स्वरूप बदलेगा, बल्कि यह निर्भर लोगों की आजीविका को प्रभावित करेगा.

कई रिपोर्टों और अध्ययनों ने रेखांकित किया है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव और इसे कम करने के प्रयासों, दोनों के दूरगामी सामाजिक और आर्थिक परिणाम होंगे. झारखंड द्वारा ली गई पहल अच्छी तरह से क्रियान्वित की जाती है तो यह देश में नीतिगत बदलाव का एक मॉडल और सक्सेस स्टोरी बन सकता है. हालाँकि नेट जीरो टारगेट हासिल करने के क्रम में आर्थिक संरचना का पुनर्गठन, नए और पुराने रोजगार से जुड़ी समस्या के ठोस समाधान के साथ-साथ समावेशी विकास का रास्ता काफी चुनौतीपूर्ण होगा, खासकर उन लोगों के लिए जो जीवाश्म-ईंधन संचालित अर्थव्यवस्था के हाशिये पर हैं.

राज्य में कोयला और थर्मल पावर प्लांट तथा इससे संबद्ध स्थानीय अर्थव्यवस्था, लघु-सूक्ष्म उद्योगों और असंगठित क्षेत्र से लाखों लोग जीविका प्राप्त करते हैं. जीवाश्म-ईंधन पर आधारित कई शहरों के आर्थिक ढांचा को कैसे बिना आघात के नए बदलावों के अनुरूप तैयार किया जाये, यह बड़ी चुनौती होगी. यही कारण है कि इस टास्क फ़ोर्स पर पूरे देश की नजर है, क्योंकि छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे अन्य जीवाश्म संसाधन से समृद्ध राज्य झारखंड द्वारा तैयार रोडमैप और मॉडल से सीख लेने के लिए प्रेरित होंगे.

इस पूरे परिप्रेक्ष्य में कई महत्वपूर्ण प्राथमिकताओं पर अमल अपेक्षित है, जैसे भविष्योन्मुखी अर्थव्यवस्था की राह में आनेवाले प्रमुख अवरोधों और सकारात्मक संभावनाओं की पहचान करना, सभी पक्षों को साथ लेकर अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक योजनाएं बनाना, कन्वर्जेन्स मॉडल के साथ सभी विभागों एवं एजेंसियों के बीच समन्वय को बढ़ावा देना आदि, ताकि वर्तमान चुनौतियों में भावी अवसरों को तलाश करते हुए झारखंड को देश का एक अग्रणी राज्य बनाया जा सके.

लेखक सेंटर फॉर एनवायरनमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीड) के सीईओ हैं.

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