स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने में स्वास्थ्य और ऊर्जा के सह–सम्बंधों पर आधारित रोडमैप की जरूरत
रांची, 21 अगस्त : सेंटर फॉर एनवायरनमेंट एंड एनर्जी डेवलपमेंट (सीड) और सेलको फाउंडेशन ने “हेल्थ एंड एनर्जी इंटीग्रेशन : स्ट्रेंग्थेनिंग हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर थ्रू डीआरई इन झारखंड‘ विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया, जिसका उद्देश्य राज्य के स्वास्थ्य केंद्रों में विश्वसनीय एवं गुणवत्तापूर्ण ऊर्जा की उपलब्धता के साथ–साथ सभी लोगों तक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच विषय पर परिचर्चा करना और भावी रास्ते सुझाना था. दरअसल स्वास्थ्य ऐसा क्षेत्र है, जहां सेवाओं को सुचारु रूप से जारी रखने और जरूरतमंदों को इमरजेंसी सुविधाएँ प्रदान करने के लिए चौबीसों घण्टे बिजली की जरूरत होती है और सबों तक स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने में इसकी अनिवार्य भूमिका है.
हालाँकि आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में बिजली के अलावा अन्य समस्याएं मौजूद हैं, जैसे कुशल चिकित्सा कर्मचारियों की उपलब्धता और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए सही योजना प्रबंधन और अन्य जरूरी साधनों की कमी आदि. उदाहरण के लिए, भारत के करीब 80% पब्लिक हेल्थ सेंटर्स निर्धारित मानकों को पूरा नहीं कर पाते. झारखंड के 54% पब्लिक हेल्थ सेंटर्स में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है, खासकर चौबीसों घण्टे, निर्बाध और विश्वसनीय बिजली की आपूर्ति नहीं होती. ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित स्वास्थ्य केंद्रों में अपर्याप्त बिजली आपूर्ति अक्सर स्वास्थ्य सेवाओं की कार्यक्षमता को प्रभावित करती है.
यद्यपि ग्रामीण स्वास्थ्य के क्षेत्र में अक्षय ऊर्जा खासकर ‘डिसेंट्रलाइज्ड रिन्यूएबल एनर्जी (डीआरई)’ यानि विकेन्द्रीकृत अक्षय ऊर्जा को एक ‘हेल्थ सोल्यूशन‘ के रूप में वह स्थान नहीं मिला है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के युग में तार्किक तौर पर डीआरई एक बेहतरीन उपाय है, जो ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे को बेहतर कर सकता है, और सततशील ढंग से स्वास्थ्य संबंधी लक्ष्यों को हासिल कर सकता है. चूंकि झारखण्ड में हेल्थ स्ट्रक्चर डिसेंट्रलाइज्ड है, ऐसे में विकेन्द्रीकृत अक्षय ऊर्जा आधारित समाधान राज्य के लिए बेहतर उपाय हो सकते हैं, जिससे दूरदराज ग्रामीण और आदिवासी इलाकों के अंतिम व्यक्ति तक स्वास्थ्य सेवाओं को प्रदान किया जा सकता हैं.
ऊर्जा और स्वास्थ्य के एकीकरण, जो राज्य के रिन्यूएबल एनर्जी टारगेट को पूरा करने के साथ–साथ स्वास्थ्य संबंधी लक्ष्यों को पूरा करने में महत्वपूर्ण है, पर जोर देते हुए श्री भरतेश के. शेट्टी, सीनियर मैनेजर – हेल्थ, सेलको फाउंडेशन ने कहा कि “डीआरई के माध्यम से सौर ऊर्जा पर आधारित कोल्ड स्टोरेज, वैक्सीन रेफ्रिजरेटर, बेबी वार्मर, पोर्टेबल मेडिकल केयर किट की समुचित व्यवस्था की जा सकती है और सामान्य से लेकर आपात स्थिति में भी चिकित्सा सेवाओं को बेहतर किया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य संबंधी सूचकांक पर राज्य बेहतर प्रगति हासिल कर सकता है.”
देश के अन्य राज्यों में हो रही अच्छी पहल के बारे में बताते हुए सुश्री दिव्या कोट्टाडियल, कम्युनिकेशन डायरेक्टर, पावर फॉर ऑल ने कहा कि “कई राज्यों ने अक्षय ऊर्जा के कई समाधानों और प्रयोगों से समूचे ग्रामीण स्वास्थ्य ढांचे को पुनर्जीवित किया है और वे बेहतर और किफायती सुविधाएं प्रदान कर रहे हैं. ऐसे प्रयोगों को विविध स्टेकहोल्डर्स को साथ लेकर लागू करने से झारखण्ड में भी ऐसी सफलता दोहराई जा सकती है.”
बड़े सामाजिक बदलाव के लिए एक समुचित परिवेश और सामंजस्यपूर्ण प्रयासों की जरूरत होती है. इस पर झारखंड रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (जेरेडा) के प्रतिनिधि ने सहमति व्यक्त की कि डीआरई सोलूशन्स के माध्यम से राज्य के कई स्वास्थ्य केंद्रों में ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित की गयी है, जिससे स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हुई हैं. इसे पूरे राज्य में फ़ैलाने के लिए हेल्थ एवं एनर्जी को जोड़ते हुए एक बुनियादी अध्ययन शुरू करने और स्वास्थ्य एवं ऊर्जा विभाग के अलावा अन्य महत्वपूर्ण विभागों के साथ साझा तौर पर ठोस पहल करने की जरूरत है.
वेबिनार में वक्ताओं ने एकमत से सहमति जताई कि एनर्जी एक्सेस के नजरिये से राज्य के समूचे स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए एक समुचित रोडमैप तैयार करने की जरूरत है और विभिन्न स्टेकहोल्डर्स के साथ मिलकर ऐसा समुचित परिवेश तैयार किया जा सकता है, जो स्वास्थ्य और अक्षय ऊर्जा के लक्ष्यों को हासिल करने में कारगर हो. निश्चय ही, डीआरई झारखण्ड के स्वास्थ्य क्षेत्र में एक नया आयाम रच सकता है और कोरोना महामारी के दौर में स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. इस वेबिनार में सरकारी एजेंसियों, निजी क्षेत्र, थिंक टैंक, रिन्यूएबल एनर्जी डेवेलपर्स, सिविल सोसाइटी, मीडिया, शिक्षाविद और नागरिकों ने सक्रियता से भागीदारी की.
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